याद ही है तेरी बस!
गर्मियों की छुट्टियों में तेरा यहाँ आना तेरी आहटों से दिल की धड़कने बढ़ जाना हम खेलते थे लुका -छुपी इधर उधर इस कदर के वो पत्थर भी गुनगुनाते थे गीत कोई पुराना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ खोई सी ॥ वो कुर्सियों को मिलाकर एक छोटा घर बनाना माँ की चुन्नियाँ थी छत का एक बहाना खेलते थे घर घर इधर उधर इस कदर के हवा भी चुन्नियों की कच्ची छत देख , बदल देती थी ठिकाना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ खोई सी ॥ वो बाग़ में टहलना और पेड़ों से लटकना वो बंद कमरे में छुपके नाच के मटकना वो ब्यास नदी का पानी ठंडा था इस कदर वो छींटे मारकर ही पंछियों सा चहकना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ खोई सी ॥ फिर रात के अँधेरे में ताश को चमकाना मोमबत्ती की रोशनी में 'सफ़