डरती हूँ मैं कि क्या करूँ ? क्या हिम्मत रखने की गुंजाइश अभी बाकी है ? हँसते हो तुम, सोचते हो कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी, शायद मुझे अपना बल दिखाना अभी बाकी है। तुम्हें यदि ऐसा खयाल है कि मेरी पहचान है तुमसे और मान सम्मान भी तो डरती हूँ मैं ! डरती हूँ मैं तुम्हारे इस खयाल से, हँसते हो तुम, सोचते हो, तुम्हारी उंगली पर नाचता खिलौना हूँ मैं, कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी शायद मुझे अपना परिचय देना अभी बाकी है। और यदि तुम्हें ऐसा खयाल है कि मैं देवी हूँ ! कोई सीता या काली हूँ तो डरती हूँ मैं ! डरती हूँ मैं तुम्हारे आदर से, मुझे दिए गए सत्कार से, हँसते हो तुम, सोचते हो, तुम्हारे कर्मों को सहन करती हुई मौन मूरत हूँ मैं ! कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी, शायद मुझे अपने रूप का अनुसरण करना अभी बाकी है। क्योंकि तुम्हारी दी पहचान है ज़्यादा कुछ ख़ास नहीं, मुझे देवी-सा पूजने का ढोंग है आया कुछ रास नहीं, डरती हूँ तुम्हारे मैले मन से जो मुझ पर अपना हक़ समझता है डरती हूँ मैं अकेले चलने से, कि कदम हर मर्द पर अब शक करता है। हँसते हो तुम, सोचते हो, कि मिट्टी से उभरी नाज़ुक गुड़िया ...
गर्मियों की छुट्टियों में तेरा यहाँ आना तेरी आहटों से दिल की धड़कने बढ़ जाना हम खेलते थे लुका -छुपी इधर उधर इस कदर के वो पत्थर भी गुनगुनाते थे गीत कोई पुराना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ खोई सी ॥ वो कुर्सियों को मिलाकर एक छोटा घर बनाना माँ की चुन्नियाँ थी छत का एक बहाना खेलते थे घर घर इधर उधर इस कदर के हवा भी चुन्नियों की कच्ची छत देख , बदल देती थी ठिकाना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ खोई सी ॥ वो बाग़ में टहलना और पेड़ों से लटकना वो बंद कमरे में छुपके नाच के मटकना वो ब्यास नदी का पानी ठंडा था इस कदर वो छींटे मारकर ही पंछियों सा चहकना । मैं करती थी इंतज़ार हर वक़्त , हर दफा , जीते थे वो दिन, हर लम्हा हर पल सफा , अब याद ही है तेरी बस , इधर उधर सोई सी , नम हैं ये आँखें जाने कहाँ ख...
Thou! Like the Great Grandfather, Strange and Strong. Proud, in way Thou stand, By a river, narrow but long. Stubborn in Thy dominance, Thou crouch on, to guard. Rocks, trees, in reverence, Turn bare and hard. Thy strict facial expression, Hones the attitudes of lives. Thy high altitudes, Infuse coldness in mind. Thence mind relentlessly longs Solitude in Thine old arms. In a trance, I leave the thoughts Of anything I can jot. Before Thy cold desert, Dear Spiti, My being is only a dot, My being is only a dot.
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