मुझे रहने दो बस कुछ दिन और


मुझे रहने दो ,
कुछ दिन और,
उलझनों से दूर,
सुलझी हुई  बरखा में ...

आतिशों की चमक से परे ,
जहाँ  घनेरी परछाई है ,
डुबडुबाती किश्ती से दूर,
किसी पृथक किनारे में ...

रेशमी धागों के बुने जालों से परे,
जहाँ भीनी सरसों महकती है ,
वक़्त की कड़ियों से दूर ,
किसी नायाब नज़ारे में ...

मुझे रहने दो ,
बस कुछ दिन और,
बस यहीं मुझे ,
मेरे घर में...।

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