शायद नयी धुप है... या कोई बारिश ...

(continued Ragged up! Sem 3 )

वो भ्याग ,
जागी सी मेरे पास आई ,
माड़ी सी धुंध में,
सब वीरान करने ,
नज़रें कुछ समझ ना पायी ,
शायद बुरी खबर है... या कोई साज़िश ...

वो दिन ,
सब साथ चले ,
ना कोई गुनाह, ना कुछ साबित ,
फिर भी छपी वो कहानी ,
मन-गढ़ित , सब ठहरे रह गए ,
शायद कोई कोशिश है... या किसी की रंजिश...

वो साँझ ,
जब छूट गए पीछे मेरे कुछ दोस्त ,
भारी मन आगे चला, भरी भीड़ में अकेला ,
उन आंसुओं की बरखा में,
चंद बूंदें मेरी भी थी ,
नज़रें फिर आशुफ़्ताह थी, 
शायद कोई गुहार हो..या कोई गुज़ारिश..

वो रात ,
आक़िबत-ए -कार एक खबर लायी ,
हाँ  फिर मिल जाएंगे गुम थे जो,
बुनी हुई भूल-भुलैय्या  में ,
नज़रें भरी असमंजस में ,
हाथ में थमे कुछ इख्तियार ,
शायद सुहानी मुलाक़ात हो... या कोई ख्वाहिश... 

वो भ्याग , एक बार फिर ,
जागी सी मेरे पास आई ,
माड़ी सी धुंध में,
सब रौशन करने ,
नज़रें कुछ समझ ना पायी ,
शायद नयी धुप है... या कोई बारिश ...



Comments

Aadii said…
bahut khoob!
Vidisha Barwal said…
thankyou very much :)
. vaah vaah ... kyaa baat hai ... behatreen !!!
Vidisha Barwal said…
bahaut bahaut dhanyavaad!

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