डकैती है

हवाएँ यूँ ही गुज़र गयी ,
छूके मुझे ,
भरे अँधेरे में, 
नया सा कुछ सांवला है, 
चुप है कोई ,
मैं भी बिलकुल वैसी ,
कोई आया है ,
मगर अनकहा है।  

एक मोड़ यूँ ही छूट गया ,
जैसे लूटके मुझे ,
भरे उजाले में ,
नया सा कुछ चमकीला है ,
सुन्न है कोई ,
मैं भी हूँ उस जैसी, 
जो आया है ,
अनसुना है । 

बरखा भी शोर मचा गयी, 
जैसे भिगोके मुझे ,
भरे मन के खोखले में ,
नया सा कुछ बाँवला है ,
गुम है कोई ,
मैं भी अब हूँ वैसी ,
कोई आया तो है ,
मगर अनदेखा है। 

ढूंढ रही है नज़रें, 
परेशान सीं  ये .
जैसे लुका - छुपी की पहेली है ,
मेरे हर सवाल का जवाब ,
नाराज़ आया है ,
खयाल भी कैसा नासाज़ आया है ,
कोई आया है, चांदनी कहती है ,
कि ये कोई चोरी नहीं ,
डकैती है ... । 





Comments

Apoorva Tikku said…
Very beautifully written!!
Very well written Vidisha ji first time enter ur blog ....and i feel very happy
Vidisha Barwal said…
Thankyou so much :)
Ankita Chauhan said…
speechless ! You write beautiful Vidi :)
Vidisha Barwal said…
thankyou so very much :D

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