सड़क
ये रेंगती हुई सड़क
ज़होर की ओर
बिठा गई है डर घूम जाने का
दिला गई है भरोसा फिर भी, रास्ते का
जिसपे इठला रही है ये सरकारी बस,
कंडक्टर भी झूलता हुआ
युँ किराया बटोरता
एक तरफ़ से ये पहाड़ नीचे खाई को घूरता हुआ
जैसे टटोलता है कुछ सन्नाटे में
मांँगता है वक्त साथ में
मगर ये बस ज़रा आवाज़ करती है
धड़धड़धड़धड़ धड़धड़धड़धड़
बिखेरती हुई शोर ही शोर
ऊपर से ये रेंगती हुई सड़क
ज़होर की ओर...
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Zarur.