वो कहते हैं कि सरकार सड़क बढ़ा रही है...



तूने देखा ?
वो आँगन जिस पर हमने रंगोली बनायी थी,
न जाने क्यों अब धूल हो गयी है। 
जिस आँगन में... वो! कुर्सियों का घर बनाया था,
न जाने क्यों अब मुसाफिरों का मुकाम बन गयी है। 
हमारी यादें उस आँगन में सिमटी हुई, 
अब न जाने किस-किस की तस्वीर हो गयी है,
ताश छुपाये कोने वाला कमरा भी ढेर हो गया है। 
उससे भी पहले ढेर हो गयी वो बालकनी,
जहाँ नाना संग *ब्यास को घूरा करते थे। 
वो कहते हैं कि सरकार सड़क बढ़ा रही है...
घर बिखरता देख रही आँखों में, 
दर्द का सैलाब उनके भी है।।

हमारे बचपन के किस्सों को न जाने कितने पहिये कुचलने लगे हैं। 
शिकायत करूँ ? क्या कहूं ! 
दिल हल्का करने के लिए तू भी साथ नहीं है। 
हमारी हंसी की फुलकारियों को ,
न जाने कितने हॉर्न शांत कर गए हैं !
खबर दे दूँ तुझे,
कि अब उस गेट पर कभी झूलना नहीं होगा,
उस खेत के पेड़ों पर फिर चढ़ना नहीं होगा,
उस चूल्हे की गर्माहट में खुद को सेकना नहीं होगा,
वो कहते हैं कि सरकार सड़क बढ़ा रही है...
छुट्टियों के उस अड्डे को बिगड़ता देख रही आँखों में, 
दर्द का सैलाब मेरे भी तो है।।

क्या तूने देखा ?
बैट-बॉल खेलते-खेलते बार-बार जिस *डोहरी में, 
बॉल खो जाया करती थी, उधर... एक... ईमारत बन रही है।
मामा कहते हैं कि वो नया घर है !
पर नए घर की बालकनी में क्यों मेरा दम घुटता है ?
शायद इसलिए मामा भी लौट उस अध्-टूटे मकान में,
*साह टटोलने जाते थे,
बचे हुए किसी हिस्से में सो जाते थे। 
वो कहते हैं कि सरकार सड़क बढ़ा रही है...
ताउम्र लम्हों को जकड़े हुए उस मकान को,
राख से मिलता देख रही आँखों में,
दर्द का सैलाब उनके भी है।।

इस सब के दरमियान हम सभी के दिलों पर ताला पड़ा है। 
शायद इसलिए नानी ने खुलकर कुछ कभी कहा ही नहीं। 
एक मुस्कान, खाली सी थी,
जिसे पढ़ पाने का तजुर्बा मेरे पास तो नहीं। 
हाँ ! इतना बूझ पायी हूँ, कि 
जिस घर को उन्होंने घर बनाया था,
उसे महज़ खंडहर में समाते देख रही आँखों में ,
दर्द का सैलाब तो उनके भी है।।
वो कहते हैं कि सरकार सड़क बढ़ा रही है...




*ब्यास = हिमाचल प्रदेश की एक मुख्य नदी 
*डोहरी = खेत या क्यारी (पहाड़ी  में )
*साह = सांस  (पहाड़ी  में )

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