भेज दो पैग़ाम
भेज दो पैग़ाम ब्यास की उन लहरों को , आज खुश हूँ मैं, मेरी प्यास कुछ इस तरह आराम हुई है, मेरी पलकों की गीली कतारों को सूखता देख, दुनिया भी किस कदर हेरान हुई है। जाड़े के मौसम में, जम गए जो हाथ , पन्नों से यूँ ही गुफ्तगू कर रहे, कि कलम भी पहली बार मुझसे किस कदर परेशान हुई है। भेज दो पैगाम इन बर्फीली हवाओं को, आज खुश हूँ मैं, बड़े दिनों बाद, मेरे आँगन में चाँद की रौशनी यूँ छिटकी है , कि तारे भी ख़याल कर रहे इस तरह, दर पे मेरे ये कैसी आज करामात हुई है।।