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Showing posts from January, 2014

भेज दो पैग़ाम

भेज दो पैग़ाम ब्यास की उन लहरों को , आज खुश हूँ मैं, मेरी प्यास कुछ इस तरह आराम हुई है, मेरी पलकों की गीली कतारों को सूखता देख, दुनिया भी किस कदर हेरान  हुई है। जाड़े के मौसम में, जम गए जो हाथ , पन्नों से यूँ ही गुफ्तगू कर रहे, कि कलम भी पहली बार मुझसे किस कदर परेशान हुई है। भेज दो पैगाम इन बर्फीली हवाओं को, आज खुश हूँ मैं, बड़े दिनों बाद, मेरे आँगन में चाँद की रौशनी यूँ छिटकी है , कि तारे भी ख़याल कर रहे इस तरह, दर पे मेरे ये कैसी आज करामात हुई है।।

वक़्त की रेत

चक्के  खेलते थे और चाँद तले, छत के ऊपर कुछ अपना ही गुनगुनाते थे हँसते थे, तू मुझपे, मैं तुझपे, देखती थी तू उस बरखा में , मैं फिसल तो नहीं गई ... अब तो बरसात भी नयी और चाँद भी कुछ और, वक़्त की रेत, जो फिसल गयी । साईकल में अपने पीछे बिठाकर काफी चक्कर काटे थे , मोहल्ले में जब रात को, गहरे कितने सन्नाटे थे कोई कहानी फिर भी हम फ़ुसफ़ुसा ही जाते थे , बचपन कि वो बातें , अब यादों का बवाल हो गयी, ज़िन्दगी हमारी अलग रास्तों पर , निसार हो गयी अब तो तू भी दूर , मैं भी ग़ुम  कहीं और, वक़्त की रेत, जो फिसल गयी ।।