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डकैती है

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हवाएँ यूँ ही गुज़र गयी , छूके मुझे , भरे अँधेरे में,  नया सा कुछ सांवला है,  चुप है कोई , मैं भी बिलकुल वैसी , कोई आया है , मगर अनकहा है।   एक मोड़ यूँ ही छूट गया , जैसे लूटके मुझे , भरे उजाले में , नया सा कुछ चमकीला है , सुन्न है कोई , मैं भी हूँ उस जैसी,  जो आया है , अनसुना है ।  बरखा भी शोर मचा गयी,  जैसे भिगोके मुझे , भरे मन के खोखले में , नया सा कुछ बाँवला है , गुम है कोई , मैं भी अब हूँ वैसी , कोई आया तो है , मगर अनदेखा है।  ढूंढ रही है नज़रें,  परेशान सीं  ये . जैसे लुका - छुपी की पहेली है , मेरे हर सवाल का जवाब , नाराज़ आया है , खयाल भी कैसा नासाज़ आया है , कोई आया है, चांदनी कहती है , कि ये कोई चोरी नहीं , डकैती है ... ।