तुम रुको तो कुछ बात बने
सीली सीली यादों को , अर्सों की धुप मिले , दूरी ये दूर हो , फिर नया अफ़साना चले, अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... मुलाकातों की रेल , ठहाकों की फुहार बहे , फिर दिन ढलने लगे , चिड़ी -चिक्के का वो खेल चले , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... थोड़े सोये , थोड़े जागे , हम तुम जब यूँ बात करें , आधी रात तले , नींदों को भी बेहोश करें , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... अनगिनत बातों का , फिर वो बाज़ार बने , अनकही रह गयी जो , मेरी खामोशी मुझपे वार करे, अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... अजनबी से थे , शाायद इत्ने भी नहीँ , तुम्हारे जाने से क्यूँ मेरी , आँखें मुझे नम मिलें , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने...