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Showing posts from April, 2014

तुम रुको तो कुछ बात बने

सीली सीली यादों को , अर्सों की धुप मिले , दूरी ये दूर हो , फिर नया अफ़साना चले, अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... मुलाकातों की रेल , ठहाकों की फुहार बहे , फिर दिन ढलने लगे , चिड़ी -चिक्के का वो खेल चले , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... थोड़े  सोये , थोड़े जागे , हम तुम जब यूँ बात करें , आधी रात तले , नींदों को भी बेहोश करें , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... अनगिनत बातों का , फिर वो बाज़ार बने , अनकही रह गयी जो , मेरी खामोशी मुझपे वार करे, अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने... अजनबी से थे , शाायद इत्ने भी नहीँ , तुम्हारे जाने से क्यूँ मेरी  , आँखें मुझे नम मिलें , अगर तुम रुको ,तो फिर कुछ बात बने...

हमारी दोस्ती

नयी बातें , और मुस्कुराहटों पे टिके अपने दिन , बरसात में भीगी भीगी सी हमारी दोस्ती... पंछियों सी उड़ान , और तारों की झिलमिल, राह चलते फूलों सी महकी हमारी दोस्ती ... देखना वो ठेले , और मस्त मेले की शाम , चाट जैसी चटपटी चखती हमारी दोस्ती ... रूठे जो एक बार , दो बार मनाया कच्चे धागे की डोर पे यूँ ठहरी हमारी दोस्ती ... कुछ अन -बन , जाने क्यों , बात हो ना पायी , खामोशियों की सर्दी में ठिठुरती हमारी दोस्ती ... अब इंतज़ार , गागर में पत्थर डलने का , यूँ रह गयी रूखी -सूखी सी हमारी दोस्ती ...