डरती हूँ मैं
डरती हूँ मैं
कि क्या करूँ ?
क्या हिम्मत रखने की गुंजाइश अभी बाकी है ?
हँसते हो तुम, सोचते हो
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
शायद मुझे अपना बल दिखाना अभी बाकी है।
तुम्हें यदि ऐसा खयाल है
कि मेरी पहचान है तुमसे
और मान सम्मान भी
तो डरती हूँ मैं !
डरती हूँ मैं तुम्हारे इस खयाल से,
हँसते हो तुम, सोचते हो,
तुम्हारी उंगली पर नाचता खिलौना हूँ मैं,
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी
शायद मुझे अपना परिचय देना अभी बाकी है।
और यदि तुम्हें ऐसा खयाल है
कि मैं देवी हूँ !
कोई सीता या काली हूँ
तो डरती हूँ मैं !
डरती हूँ मैं तुम्हारे आदर से,
मुझे दिए गए सत्कार से,
हँसते हो तुम, सोचते हो,
तुम्हारे कर्मों को सहन करती हुई मौन मूरत हूँ मैं !
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
शायद मुझे अपने रूप का अनुसरण करना अभी बाकी है।
क्योंकि तुम्हारी दी पहचान
है ज़्यादा कुछ ख़ास नहीं,
मुझे देवी-सा पूजने का ढोंग
है आया कुछ रास नहीं,
डरती हूँ तुम्हारे मैले मन से
जो मुझ पर अपना हक़ समझता है
डरती हूँ मैं अकेले चलने से,
कि कदम हर मर्द पर अब शक करता है।
हँसते हो तुम, सोचते हो,
कि मिट्टी से उभरी नाज़ुक गुड़िया हूँ मैं,
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
तुम्हारी इन गलतफहमियों को दूर करना अभी बाकी है।
तुम्हें बनाया मैंने,
यह घटना मात्र इतिहास नहीं !
नारी हूँ मैं !
तुम्हारी आकांक्षा या कोई उपहास नहीं।
तुम्हें मज़बूत बाहें दी थी,
अपने हाथों में कड़ियाँ पहनकर !
पाला था तुम्हें गर्व से,
एक सुनहरा भारत सोचकर।
मगर तुम खाली 'कुछ' नहीं
अपितु 'पूरा' ही गलत समझ बैठे हो !
अपने दम पर आगे बढ़ने वाले तुम,
अपनी ताकत को गुरूर बना बैठे हो।
हँसते हो तुम, सोचते हो,
कि तुम बिगड़ी बनाने वाले,
क्या ख़ाक तुम्हारा बिगाड़ूँगी मैं ?
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
अभी इन हाथों की कड़ियों का, टूटना, बाकी है,
तुम्हारे इन ख़यालों का विध्वंस होना अभी बाकी है !
और बाकी है कुछ ? एक मौका, सुधार का,
जिस मौके पर तुम्हारा खरा उतरना अभी बाकी है।।
कि क्या करूँ ?
क्या हिम्मत रखने की गुंजाइश अभी बाकी है ?
हँसते हो तुम, सोचते हो
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
शायद मुझे अपना बल दिखाना अभी बाकी है।
तुम्हें यदि ऐसा खयाल है
कि मेरी पहचान है तुमसे
और मान सम्मान भी
तो डरती हूँ मैं !
डरती हूँ मैं तुम्हारे इस खयाल से,
हँसते हो तुम, सोचते हो,
तुम्हारी उंगली पर नाचता खिलौना हूँ मैं,
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी
शायद मुझे अपना परिचय देना अभी बाकी है।
और यदि तुम्हें ऐसा खयाल है
कि मैं देवी हूँ !
कोई सीता या काली हूँ
तो डरती हूँ मैं !
डरती हूँ मैं तुम्हारे आदर से,
मुझे दिए गए सत्कार से,
हँसते हो तुम, सोचते हो,
तुम्हारे कर्मों को सहन करती हुई मौन मूरत हूँ मैं !
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
शायद मुझे अपने रूप का अनुसरण करना अभी बाकी है।
क्योंकि तुम्हारी दी पहचान
है ज़्यादा कुछ ख़ास नहीं,
मुझे देवी-सा पूजने का ढोंग
है आया कुछ रास नहीं,
डरती हूँ तुम्हारे मैले मन से
जो मुझ पर अपना हक़ समझता है
डरती हूँ मैं अकेले चलने से,
कि कदम हर मर्द पर अब शक करता है।
हँसते हो तुम, सोचते हो,
कि मिट्टी से उभरी नाज़ुक गुड़िया हूँ मैं,
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
तुम्हारी इन गलतफहमियों को दूर करना अभी बाकी है।
तुम्हें बनाया मैंने,
यह घटना मात्र इतिहास नहीं !
नारी हूँ मैं !
तुम्हारी आकांक्षा या कोई उपहास नहीं।
तुम्हें मज़बूत बाहें दी थी,
अपने हाथों में कड़ियाँ पहनकर !
पाला था तुम्हें गर्व से,
एक सुनहरा भारत सोचकर।
मगर तुम खाली 'कुछ' नहीं
अपितु 'पूरा' ही गलत समझ बैठे हो !
अपने दम पर आगे बढ़ने वाले तुम,
अपनी ताकत को गुरूर बना बैठे हो।
हँसते हो तुम, सोचते हो,
कि तुम बिगड़ी बनाने वाले,
क्या ख़ाक तुम्हारा बिगाड़ूँगी मैं ?
कि कमज़ोर हूँ मैं, डरपोक भी,
अभी इन हाथों की कड़ियों का, टूटना, बाकी है,
तुम्हारे इन ख़यालों का विध्वंस होना अभी बाकी है !
और बाकी है कुछ ? एक मौका, सुधार का,
जिस मौके पर तुम्हारा खरा उतरना अभी बाकी है।।
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